चांदनी पर ग़ज़ल कहने वाली से मैंने कहा
"चांदनी तुम भी हो "
और - वो हंस पड़ी
उसके होठों पर बिखरी हुई
नीमजां ज़र्द किरणों को मैंने चुना
और - मैं रो पड़ा
उसने मुझसे कहा
"बोल तेरे हैं सब काँच की चूड़ियाँ
काँच की चूड़ियाँ किसको पहनाओगे?"
और - मैं हंस पड़ा
किर्चियाँ मेरे होठों से झड़ने लगीं
और - वो रो पड़ी
ज़र्द किरणों में जब किर्चियाँ मैं पिरोने लगा
वो भी रोने लगी , मैं भी रोने लगा .
~~Rashid Qaisrani~~
6 comments:
kya baat hai!
bahut umda.....
बहुत सुन्दर...
sarhaniye ....
Thank you all. I will do the needful. regards, pallavi.
इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।
एक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!
-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
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